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युवा मन की उड़ान के लिए विहंगम आकाश भी छोटा पड़ता है। युवा जीवन की विविध आकांक्षाओं तथा अवरोधों का सच्चा चित्र है 'हरे रंग का मफ़लर'। इस संग्रह की कहानियां इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में संचार क्रांति के बीच अपने सपनों को सच में तब्दील करने के लिए संघर्षरत युवा जीवन के विश्वसनीय ब्योरे अंकित करती है। इन कहानियों में न तो थोथे नारे हैं और न ही झूठी स्थापनाएं। ये हमारे आसपास पसरे जीवन के वे पल हैं जिनसे हम रोज रूबरू होते हैं। कहना न होगा आज के युवा के सामने अपने कैरियर, परिवार और समाज से जुड़ी दोहरी-तिहरी चुनौतियां हैं। उसे एक और आजीविका का विश्वसनीय जरिया खोजना है तो दूसरी तरफ अपने ख्वाबों में भी रंग भरने हैं। इस बीच जिंदगी की खुरदरी जमीन में कई ऐसे उतार-चढ़ाव भी है जहां उसके पथ विमुख होने का खतरा बना रहता है। कहानीकार मदन गोपाल लढ़ा ने इन कहानियों में अपने समय और समाज की उन सच्चाईयों को प्रामाणिकता के साथ अंकित किया है जो हमारे सामने होते हुए भी अक्सर अनदेखी रह जाती है। ये कहानियां खुरदरे यथार्थ के सूक्ष्म अंकन के बावजूद भरोसे और उम्मीदों को बचाए रखती है। निश्चय ही इन कहानियों का आत्मीयतापूर्ण पाठ पाठकों को समृद्ध करेगा।